Friday, February 20, 2009

ख़बर की ख़बर (तमिलनाडु: देखते ही गोली मारने के आदेश )

आज कल वकील लोग कुछ जादे ही हिंसक हो गए है आए दिन कँही न कँही पुलिस और वकीलों के बीच झड़प होने लगी है कभी देल्ही, इलाहबाद , कानपुर, लखनऊ , गोरखपुर, वाराणसी और अब तमिलनाडु में आखिर हर बार पुलिस और वकीलों के बीच हिंसात्मक झड़पें क्यो होती है , मै इसमे किसी का भी दोष नही दूंगा लेकिन एक बात गौर करने वाली है की जो भी झगडे हुए है उनका किसी से कोई व्यक्तिगत सरोकार नही रहा अभी आप तमिलनाडू को देख ले यहाँ पर जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी पर हमले के आरोप में एक वकील की कथित गिरफ़्तारी के विरोध में वकीलों ने हंगामा शुरु किया था. और पुलिस ने उनको रोकने के लिए बल का प्रयोग किया उसके बाद झगडा बढ़ गया और देखते ही देखते खून खराबे की नौबत आ गई कई वकीलों के सर फट गए तो कई पुलिस कर्मी भी घायल होगये और देखते ही देखते कर्फ्यू लगना पड़ा , क्या इस बात पर इतना बलवा मचना चाहिए की किसी वकील पर अगर आरोप लगते है तो पुलिस को उसे गिफ्तार नही करना चाहिए अगर पुलिस ने उसे गिफ्त्तर भी किया तो क्या ग़लत है। पुलिस का काम क्या है ? आरोपी को पकड़ना और न्यालय में प्रस्तुत करना ताकि सच और झूठ का फ़ैसला हो सके तो इस में क्या बुरा किया क्या वकीलों को इस देश के संविधान का सम्मान नही करना चाहिए वे कानून से ऊपर है , आज क्या सोचती होगी डा। बाबा साहेब , महात्मा गाँधी , और उन तमाम लोगो की आत्माएं जो पहले एक वकील थे । क्या इनता बड़ा अपराध हो गया की थाना जला दिया गाडियां फूंक दी क्या वकीलों को यह करना शोभा देता है जो कानून को बनते है या उन को सुचार रूप से चलने में मदद करते है वही इस तरह की हिंसात्मक गतिविधियों का संचालन करने लगे तो आम आदमी क्या करेगा ,अगर ये विरोध प्रदर्शन का तरीका है, तो जो उपद्रवी करते है वो क्या है , ओ भी तो विरोध प्रदर्शन कहा जाना चाहिए न की हिंसात्मक गतिविधि , क्या वकीलों के घर में पुलिस वाले पैदा नही होते या पुलिस वाले के घर में वकील , ये दोनों कानून व्यवस्था के आधारभूत स्तम्भ है , अगर ये ही आपस में लड़ने लगे तो कानून व्यवस्था को कौन बनाये रखेगा क्या इस तरह की घटनाये इंसानियत , समाज , देश और कानून की अस्मिता पर प्रश्न चिह्न नही लगाती क्या एक शिक्षित व्यक्तियों के समूह को इस तरह की घटनाओ को जन्म देना शोभा देता है । ये लोग इस तरह के कार्य कर के क्या साबित करना चाहते की इनमे एकता है, क्या अपनी एकता को प्रदर्शित करने का यही एक रास्ता बचा है ।
अगर कोई मेरे इस लेख को भूले भटके पढता है तो एक बार मेरे इस बकवास पर गौर जरुर कीजियेगा और अगर आप के दिल में कोई इस तरह की घटना को रोकने का सुझाव हो तो मुझे या फ़िर अपने ब्लॉग पर जरुर पोस्ट कीजियेगा। आपना काम तो समझाना और समझना है, बाकि करने वाले जाने? देख तेरे संसार की हालत क्या होगई भगवान.................................................................

Thursday, February 19, 2009

ख़बर की ख़बर (गृहमंत्री पी. चिदंबरम)

आज के समाचार पत्रों में पढा की गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि "अब भारत 'मुंबई जैसे आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए' पहले की तुलना में बेहतर ढंग से तैयार है." क्या गृहमंत्री महोदय जी आप के इस बयान से आम आदमी संतुष्ट हो जाएगा क्या आप यह कहना चाहते है की जब मुंबई पर हमला हुआ तो हमारे देश के नेतृत्व करने वाले हमारे नेता तैयार नहीं थे , क्या इस से पहले देश पर हमले नहीं हुए है तो क्या हम या हमारे नेता इस वक्त का इंतजार कर रहे थे की मुंबई के ताज और ओबराय पर हमला ? हो तो क्या अब तक जितने भी आतंकवाद निरोधी कोशिशे हुई वह सिर्फ़ एक तयारी थी। दिल्ली पर हमला हुआ , संसद पर हमला हुआ लोकल ट्रेनों में बम्ब बिस्फोट हुआ यात्री विमान का अपहरण हुआ तब हम तैयार नहीं थे आखिर हम इस तरह के हादसे होने के बाद क्यो तैयार होते है आखिर कब तक हम सांप निकलने के बाद लकीर पिटते रहेंगे क्या हर बार हम इसी तरह से करते रहेंगे आखिर क्या हुआ मुंबई हादसे का धीरे धीरे सब ठंढा होत जा रहा है न्यूज़ चैनेल , विपछ के नेता या फ़िर कोई भी सब धीरे धीरे भूल जायेंगे फ़िर किसी दिन एसा हादसा होग फ़िर जागेंगे और कहेंगे की हम अब तैयार है. किसको बेवकूफ बनाया जा रहा आम आदमी को, क्या ये सब वोट की राजनीत है ? आखिर हम हमले झेलने के लिए तैयार क्यो होते है , हमले करने के लिए क्यो नहीं के ऐसा नहीं हो सकता की इस तरह के वारदात होने ही न दिए जाए जैसे अमेरिका ने ट्रेड टावर पर हुए हमले के बाद किया अब उसने क्या क्या सुरक्ष इंतजाम अपनाए ये तो हम बता नहीं सकते क्योंकी मै कोई सुरक्षा सलाहकार तो हु नहीं लेकिन क्या अब अमेरिका के ऊपर आतंकवादियों के लिए हमला करना आसान होगा? नहीं , लेकिन हमारे ऊपर एक दम आसान क्योकि हम हमलों का इंतजार करते है हमारे नेता वैश्विक कूटनीतिक प्रयास करने की जगह आपस में कुर्सी के लिए कूटनीतिक प्रयास करते है आतंकवादियों को पकड़ लिया तो पकड़ लिया, वो भी बेचारे हमारे सेना के बहदुर जवान या फ़िर एक कुछ बहादुर पुलिस वाले कुछ दिन तक उस आतंकवादी का चेहरा उसका पुरा जीवन गाथा मिडिया वाले अलग अलग अंदाज में हमारे आप के सामने परोसेंगे धीरे धीरे गायब। इधर पुलिस उन्हें न्यालय में पेश करेगी और अब धीरे धीरे उन आतंकवादियों के हिमायती पैदा होने शुरू होजाएंगे, पता है ये लोग कौन है वही जो पहले तो इनका विरोध दिखने के लिए करते है उधर कोर्ट ने मौत की सज़ा दी और उधर एक अर्जी हमारे देश के माननीय राष्ट्रपति जी के फांसी माफ़ी के लिए पहुच जायेगी आब आपको तो पता है यंहा पर अर्जी पर फ़ैसला आने में कितना वक्त लगता है तब तक कितने राष्ट्रपति जी आएंगे और जायेंगे लेकिन वह अर्जी वही की वही पड़ी रहेगी और फांसी की सज़ा लटकी रहेगी. उधर वह आतंकी जेल के अन्दर से अपनी सजिसो में रंग भरता रहेगा और हम इस तरह के हमलो को झेलते रहेंगे और हर बार हम कहेंगे अब हम तैयार है . आप लोग ख़ुद ही देखिये संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु का क्या हुआ आज तक कहिर हमें तो पता नहीं शायद आपको हो.

तो माननीय गृहमंत्री जी आपको वित्तमंत्री से गृहमंत्री इस लिए बनाया गया है की आप शिवराज पाटिल जैसे एक दीन में तीन तीन बार आपने कोट न बदले तो मेरा आप से और शायद इस देश का हर आम खास और गरीब जनता की याचना है की इस तरह की सांत्वन देने की जगह कुछ कडे कदम उठाकर करके आतंकवाद को पनपने से रोके, न की हमले झेलने के लिए तैयार हो अब वक्त आगया है की उठे बढे अपने हथियारों में गोलिया भरे और निर्दोषों की हत्या कराने वाले इन क्रूर निर्दयी अमानुष व्यक्तियों के सीनों को गोलियों से झलनी कर दिया जाए चाहे वह किस भी धर्म या किसी भी मजहब का क्यो नहो क्योकि इंसानियत और इन्सान का कोई धर्म नहीं कोई मज़हब नहीं कोई देश नहीं अगर कुछ है तो वह केवल एक भाईचारा एक प्रेम बस

नक़ल

मैंने कल एक लेख वेब दुनिया से उठा कर अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया जैसा लिखा था वैसे ही पोस्ट किया कोई फेर बदल नही किया शीर्षक था नकली असली मुद्दा था नकली ताजमहल के बारे में और पोस्ट करने का उदेश्य था की हमारे जैसे लोग जो न तो समय पर समाचारपत्र पढ़ पते और न ही देख पाते तो कम से कम इस बारे में जाने की मुगल बादशाह शाहजहाँ की आखरी हसरत की कोई ताज महल की नक़ल न कर पाए उसको भी खाक के सुपर्द कर दिया, बांग्लादेश के एक सज्जन एहसानुल्लाह मोनी (बांग्लादेशी फिल्मकार)। भाई नक़ल को तो कोई नही रोका सकता क्योंकि यह अनुवांशिक है बच्चे बाप की नक़ल करते है लोग कहते है की इसकी नाक मेरे जैसी है तो आंख माँ की जैसी। लेकिन सवाल यह है नक़ल किस की होनी चाहिए और उस नक़ल का उदेश्य क्या है अगर कोई नक़ल किसी देश समाज के कल्याण हेतु किया जा रहा है , या फ़िर किसी अच्छे आचरण का नक़ल हो रहा है तो इसमे क्या बुरा है अगर कोई भगवन राम या महात्मा गाँधी की नक़ल करे तो क्या आप या हम उसे बुरा कहेंगे नही न , लेकिन अगर कोई ओसम बिन लादेन या दाऊद की नक़ल करे तो कया आप या हम उसे अच्छा कहेंगे नही ना, तो क्या ताज महल की नक़ल उचित है जो विश्व का आठवां अजूबा है उसकी गरिमा को उसकी अस्मिता को ठेश पहुचने की कोशिश नही है , अगर आप विश्व के सबसे लंबे पुल या बाँध का नक़ल करते तो शायद यह बुरा नही है क्योकि की यंहा पर उदेश्य है देश और समाज का हित लेकिन एहसानुल्लाह मोनी का उदेश्य व्यक्तिगत है नाम और पैसा शायद इसी लिए वे इस की नक़ल कर रहे है, मुझे भी किसी सज्जन पाठक ने कहा की आप ने जो ख़बर प्रकाशित किया है अपने ब्लॉग में वो नक़ल नही , अरे नही भाई यह भी नक़ल है लेकिन मेरे नक़ल का उदेश्य अपने ब्लॉग की लोकप्रियता बढानी या पैसा कमाना नही मुझे यह ख़बर अच्छी लगी सो नक़ल कर दी लेकिन ये रीमिक्स नक़ल नही है जैसा है वैसा ही छापा हूँ और इस लेख का मतलब यह नही है की मै ख़ुद को निर्दोष साबित कर रहा हु और नकली ताज बनने वाले को ग़लत सबका आपना नजरिया होत है और सबकी आपनी सोंच बाकि आगे आपकी मर्ज़ी मेरी मर्ज़ी तो मैंने लिख दी।

Wednesday, February 18, 2009

शराब

कभी तो मैंने खुश होकर जाम को चूमा।
तो कभी गम में हलक के नीचे उतारा।
लेकीन जब भी पी तो याद तुम्हारी ही आई .
बड़ी जालिम है ये जब भूलने के लिए पीता तो याद दिला देती,
और जब याद करने के लिए पिता तो भुला देती.

जब भी हमने शराब को पी तो जन्नत नज़र आई ,
और जब नशा उतरा तो बीबी हाथ में बेलन लिए नज़र आई.

शाम को जाम पिया सुबह को तौबा कर ली।
रिन्द के रिन्द रहें हाथ से जन्नत न गइ।। (अनाम)

रखते है कहीं पांव तो पडता है कहीं और ।
साकी तू जरा हाथ तो ले थाम हमारा।। (इँशा)

कजॆ की पीते थे मय-औ यह समझते थे कि हां ।
रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन ।। (गालिब)

अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे ।
जब से वो खिंच गइ है , तलवार हो गइ है।। (अनाम)

साकी तू मेरी जाम पे कुछ पढ के फूंक दे ।
पीता भी जाउँ और भरी की भरी रहे।। (अनाम)

साकिया अक्स पडा है जो तेरी आंखों का ।
और दो जाम नजर आते है पैमाने में ।। (अनाम)

दिल छोड के यार क्यूंकि जावे ?
जख्मी हो शिकार क्यूंकि जावे ?
जबतक ना मिले शराबे दीदार ,
आंखो का खुमार क्युंकि जावे ? (वली)

रंगे शराब से मेरी नियत बदल गइ ।
वाइज की बात रह गइ साकी की चल गइ।
तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर ।
जलवा बुतों का देख के नियत बदल गइ ।।
चमका तेरा जमाल जो महफिल में वक्ते शाम ।
परवाना बेकरार हुआ शमां जल गइ।। (अकबर)

मस्जिद में बुलाता है हमें जाहिदे-नाफहम ।
होता अगर कुछ होश तो मैखाने ना जाते।। (अमीर मीनाइ)

ग़ालिब

ग़ालिब हमें न छेड़ के हम जोश-ए-अश्क*से ---------आँसुओं के बहाव
बैठे हैं हम तहैय्या-ए-तूफ़ाँ* किये हुए ------------तूफ़ान उठाने का फ़ैसला
होगा कोई ऐसा भी जो ग़ालिब को न जाने
शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है
ग़ालिब बुरा न मान जो ज़ाहिद बुरा कहे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे
कहाँ मयख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब, और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले
जब तवक़्क़ो*ही उठ गई ग़ालिब --------आस, उम्मीद
क्यों किसी का गिला करे कोई
सफ़ीना* जब किनारे पे आ लगा ग़ालिब ------ नाव
ख़ुदा से क्या सितम-ए-जोर-ए-नाख़ुदा*कहिए ----- नाव चलाने वाले के सितम
असद*ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए ---------- ग़ालिब का नाम
कहा जब उसने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब
के लगाए न लगे, और बुझाए न बुझे
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
हुआ है शेह का मुसाहिब*फिरे है इतराता -------बादशाह की संगत में रहने वाला
वगरना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है
बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिस की परदा दारी है
मैंने माना के कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुम को मगर नहीं आती
ग़ालिबे-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र व शब-ए-माहताब में ---जिस दिन बादल छाए हों, जिस रात चाँद चमक रहा हो
कुछ तो पढ़िए के लोग कहते हैं
आज ग़ालिब ग़ज़ल सरा न हुआ
ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़* ये तेरा बयान ग़ालिब-----भक्तिभाव की बातें
तुझे हम वली समझते, जो न बादा ख़्वार*होता--------शराब पीने वाला
ये लाश-ए-बेकफ़न असदे-ख़स्ता*जाँ की है -----परेशान ग़ालिब की लाश
हक़ मग़फ़िरत*करे अजब आज़ाद मर्द---------गुनाहों को मुआफ़ करे
पूछते हैं वो के ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ के हम बतलाएँ क्या
हम कहाँ के दाना* थे, किस हुनर में यकता* थे----- अकलमंद, माहिर
बेसबब हुआ ग़ालिब, दुश्मन आसमाँ अपना
रेख़ते* के तुम्ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब ---- उर्दू
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था
मैंने मजनूँ पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

नकली असली


मुगल बादशाह शाहजहाँ को क्या पता था कि उसकी पुरजोर कोशिश के बावजूद उसके द्वारा निर्मित आगरा स्थित विश्व प्रसिद्ध ताजमहल की एक दिन नकल हो ही जाएगी।
कहा जाता है कि बादशाह शाहजहाँ ने अमर प्रेम के स्मारक ताजमहल के निर्माण के बाद उसके कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे, ताकि दुनिया में कोई इसकी नकल नहीं बना सके।
ताजमहल बनने के 356 वर्षों के बाद अब इसकी प्रतिकृति बनाने का दुस्साहस बांग्लादेश के एक करोड़पति फिल्मकार ने किया है। ताजमहल की यह नकल भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव का कारण भी बन सकती है।
फ्रांस ने एफिल टावर को नकल से बचाने के लिए उसके डिजाइन का पेटेंट करा लिया था लेकिन भारत को इसका जरा भी अंदेशा नहीं रहा होगा कि दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल की भी भविष्य में कोई नकल बना लेगा। शायद इसीलिए सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।
बांग्लादेशी फिल्मकार एहसानुल्लाह मोनी को बॉलीवुड फिल्मों की नकल बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार उन्होंने भारत की ऐसी ऐतिहासिक विरासत की नकल की है, जिस पर हर भारतीय को बहुत गर्व है और जिसकी एक झलक के लिए विश्व के कोने-कोने से लाखों पर्यटक प्रतिवर्ष भारत की यात्रा करते हैं।
मोनी ने ताजमहल की इस प्रतिकृति का निर्माण बांग्लादेश की राजधानी ढाका से लगभग 30 किलोमीटर दूर नारायणगंज जिले के सोनारगाँव में लगभग पाँच वर्ष पहले शुरू कराया था।
ताजमहल की यह नकल अब लगभग बनकर तैयार हो गई है और इसे संभवतः मार्च में आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
बकौल मोनी उन्हें ताजमहल की नकल बनाने का विचार वर्ष 1980 में उस समय आया, जब उन्होंने स्वयं आगरा जाकर ताजमहल देखा। हालाँकि बाद में उन्होंने कई बार आगरा जाकर बारीकी से ताजमहल को देखा और उसके डिजाइन की हूबहू नकल करने के लिए कई विशेषज्ञों को भी वहाँ भेजा।
शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने के लिए उत्कृष्ट निर्माण सामग्री का उपयोग किया था। इसमें प्रयुक्त संगमरमर राजस्थान के मकराना से, लाल पत्थर सिकरी धौलपुर से, कीमती पत्थर भारत के दूरदराज क्षेत्रों श्रीलंका और अफगानिस्तान से मँगाए गए थे।
मोनी ने नकली ताजमहल के लिए संगमरमर और ग्रेनाइट इटली से और हीरे बल्जियम से मँगाए हैं। बंगलादेश में बनने वाले ताजमहल की नकल बनाने पर लगभग छह करोड़ डॉलर की लागत आएगी।
भारत ने अपनी इस बेशकीमती राष्ट्रीय धरोहर की नकल बांग्लादेश में बनाए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है। बांग्लादेश में प्रकाशित समाचारों के अनुसार ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग के प्रवक्ता दीपक मित्तल का कहना है कि उन्हें भी मीडिया के जरिए ही ताजमहल की नकल बनाए जाने के बारे में जानकारी मिली है। वे इस बारे में विस्तृत ब्यौरा जुटा रहे हैं।
उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति भारत जाकर किसी भी ऐतिहासिक इमारत की नकल कैसे कर सकता है।
हालाँकि बांग्लादेशी अधिकारियों ने इस बात को खारिज कर दिया है कि भारतीय ताजमहल का किसी प्रकार का कॉपीराइट किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि इस तरह की इमारत की नकल करना गैरकानूनी है।
जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश का इतिहास भी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से भरा पड़ा है। इससे पहले बांग्लादेश में लुइस खान ने संसद भवन का ऐसा डिजाइन तैयार किया था, जिसे बनने में लगभग दो दशक का समय लगा था। भारतीय इमारतों की नकल बनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य विश्व स्तर पर लोकप्रियता हासिल करना है ताकि पर्यटकों को यहाँ आकर्षित किया जा सके।
मोनी का कहना है कि बंगलादेश में अधिकतर लोग विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल को देखना चाहते हैं लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे भारत की यात्रा नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने ताजमहल की प्रतिकृति अपने देश में ही बनाने का निर्णय लिया।
बांग्लादेश में ताजमहल की नकल बनाने के पीछे मुख्य कारण गरीबी रेखा से से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को वैकल्पिक ताजमहल के दीदार कराना है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि शाहजहाँ ने ताजमहल को बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे भविष्य में ऐसी कोई इमारत नहीं बना सकें, हालाँकि इसका कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ताजमहल की प्रतिकृति बनाने के पीछे चाहे जो भी कारण हों लेकिन इसके कारण भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट घुल सकती है। किसी भी गलत कार्य को भलाई के लिए किया गया बताकर सही नहीं ठहराया जा सकता।
हालाँकि ताजमहल की प्रतिकृति के आम जनता के लिए खोले जाने के बाद ही इसका निर्णय हो सकेगा कि मोनी असली ताजमहल की वास्तविक खूबसूरती की सही अर्थों में नकल करने में कहां तक सफल हुए हैं।
नकली ताजमहल देखने वालों का कहना है कि इस पूरी परियोजना को बड़े ही घटिया तरीके से पूरा किया जा रहा है और इसमें ऐसा कोई भी कीमती पत्थर, टाइल्स और हीरे लगे दिखाई नहीं देते जैसा कि इसके बनाने वाले फिल्म निर्देशक मोनी ने दावा किया है।
कुछ लोगों का कहना है कि बांग्लादेश में नकली ताजमहल बनने के बाद यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक आकर्षित होंगे, जिससे देश के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने असली ताजमहल देखकर उसकी सराहना में कहा था कि
दुनिया में दो तरह के लोग है, एक तो वे जिन्होंने ताजमहल देखा है और दूसरे वे जिन्होंने ताजमहल नहीं देखा है।

जाहिर है कि नकली ताजमहल तो ऐसी सराहना बटोर नहीं पाएगा।
वेबदुनिया से लिया गया है
As published on वेबदुनिया

मधुशाला (हरिवंश राय बच्चन)

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।’। ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।
मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।

सवामी विवेकानन्द जी अमेरिका में व्याख्यान

अमेरिकावासी बहनो तथा भाईयो,
–आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्तखड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं।
संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर सेधन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।मैं इस मंचपर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों काउल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारितकरने के गौरव का दावा कर सकते हैं।
मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों कोसच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मोंऔर देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं।
मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूलमें मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति केअवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं।
भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ औरजिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:
रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् ।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।- ‘
जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसीप्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते सेजानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।’
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः हीगीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।- ‘
जो कोई मेरी ओर आता हैं - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोगभिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।’
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वीपर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसकोबारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरेपूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था सेकहीं अधिक उन्नत हो गया होता ।
पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जोघण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक हीलक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।
स्वामी विवेकानंद( 11 सित. 1893)

Tuesday, February 17, 2009

दुर्जन बनाम सज्जन

"इस देश को जितनी हानी दुर्जनों कि सक्रियता से नही हुई उतनी सज्जनो कि निष्क्रियता से हुई है।
शिक्षक कभी साधारण नही होता। निर्वाण और प्रलय उनकी गोद मी पलते है।"


आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य की यह कही बात आज के सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्षयमें पूर्णतया सत्य है,यह देश जितना दुर्जनों के द्वारा दिए जारहे कष्टों से उतना परेशान नही जितना हमारे समाज के सजन्नो की निष्क्रियता से दुखी है आज अपने आस-पास ही देखिये आप के ऊपर अत्त्याचार हो रहा है लेकिन आप के सज्जन पड़ोसी चैन की नीदं ले रहे है। आपके जमीन के ऊपर भू माफिया ने कब्जा कर लिया है लेकिन आपके सज्जन मित्र आप का साथ नही दे सकते , अगर आप उनसे कोई मदद मांगेगे तो उनका सीधा जवाब होगा की भाई मई तो सीधा सदा सज्जन आदमी हूँ , भला मै आप की क्या मदद कर पाउँगा,अरे नही भाई आप सीधे कान्हा है आप तो बहुत ही सीधे है बिल्कुल जलेबी की तरह से , जब इनपर कोई संकट आयेगा तो ये यह कहते फिरेंगे की भाई हमारी तो कोई मदद नही कर रहा है, भाई कैसे कोई आप की मदद करे सब बेचारे सीधे साधे है भला आप की मदद कोई कैसे करे सब तो यंहा सज्जन है। इस तरह की कितनी समस्याओं से हम लोगों को दो चार होना पड़ता है घर में , समाज में , ट्रेन में, बस में , सरकारी ऑफिस में , सड़क पर और भी जाने कितनी जगहों पर परेशानिया मिलाती है लेकिन कोई सज्जन आपकी मदद को आगे नही आता है, जिसका नतीजा एक दो टके का गुंडा भी भरी बस में , चलती सड़क पर, भरे बाज़ार में किसी लड़की को छेड़ता है, कोई उचक्का आपका बटुआ लेकर रफ्फु चक्कर होजाता है लेकिन हाय यह सज्जन बंधू खड़े हो कर तमाशा देखते और बेचारा कहा कर सांत्वना देते है , लेकिन कोई भी आगे बढ़ कर इसे होने से नही रोकता, जो की कल फ़िर किसी के साथ हो सकता है । इसी लिए जितना इस देश समाज को दुर्जनों से हानि नही है उतना सज्जनों के निष्क्रियता से नुकसान है तो कृपया सज्जन बंधुओ सज्जन जरुर बने लेकिन निष्क्रिय नही ये देश ये समाज आप का आभारी रहेगा ।

Monday, February 16, 2009

शायरी

दिल की बात बताने से क्या हासिल होंगा ,
आंसुओ को बेकार बहने से क्या फायदा,
जाने भी दो छोडो, वही होंगा ,
जो मंजूरे खुदा होंगा॥

ज़माने की हर बला को हम हँस कर सह गएँ,
आंधियो में भी इतनी हिमत्त नही थी की हमको हीला पायें,
पर कम्बखत अपनो से बढ़ते फसलों ने हमें इस कदर तोडा,
की अब तो हल्की सी हवा भी उडने लगती है॥

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