आज के समाचार पत्रों में पढा की गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि "अब भारत 'मुंबई जैसे आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए' पहले की तुलना में बेहतर ढंग से तैयार है." क्या गृहमंत्री महोदय जी आप के इस बयान से आम आदमी संतुष्ट हो जाएगा क्या आप यह कहना चाहते है की जब मुंबई पर हमला हुआ तो हमारे देश के नेतृत्व करने वाले हमारे नेता तैयार नहीं थे , क्या इस से पहले देश पर हमले नहीं हुए है तो क्या हम या हमारे नेता इस वक्त का इंतजार कर रहे थे की मुंबई के ताज और ओबराय पर हमला ? हो तो क्या अब तक जितने भी आतंकवाद निरोधी कोशिशे हुई वह सिर्फ़ एक तयारी थी। दिल्ली पर हमला हुआ , संसद पर हमला हुआ लोकल ट्रेनों में बम्ब बिस्फोट हुआ यात्री विमान का अपहरण हुआ तब हम तैयार नहीं थे आखिर हम इस तरह के हादसे होने के बाद क्यो तैयार होते है आखिर कब तक हम सांप निकलने के बाद लकीर पिटते रहेंगे क्या हर बार हम इसी तरह से करते रहेंगे आखिर क्या हुआ मुंबई हादसे का धीरे धीरे सब ठंढा होत जा रहा है न्यूज़ चैनेल , विपछ के नेता या फ़िर कोई भी सब धीरे धीरे भूल जायेंगे फ़िर किसी दिन एसा हादसा होग फ़िर जागेंगे और कहेंगे की हम अब तैयार है. किसको बेवकूफ बनाया जा रहा आम आदमी को, क्या ये सब वोट की राजनीत है ? आखिर हम हमले झेलने के लिए तैयार क्यो होते है , हमले करने के लिए क्यो नहीं के ऐसा नहीं हो सकता की इस तरह के वारदात होने ही न दिए जाए जैसे अमेरिका ने ट्रेड टावर पर हुए हमले के बाद किया अब उसने क्या क्या सुरक्ष इंतजाम अपनाए ये तो हम बता नहीं सकते क्योंकी मै कोई सुरक्षा सलाहकार तो हु नहीं लेकिन क्या अब अमेरिका के ऊपर आतंकवादियों के लिए हमला करना आसान होगा? नहीं , लेकिन हमारे ऊपर एक दम आसान क्योकि हम हमलों का इंतजार करते है हमारे नेता वैश्विक कूटनीतिक प्रयास करने की जगह आपस में कुर्सी के लिए कूटनीतिक प्रयास करते है आतंकवादियों को पकड़ लिया तो पकड़ लिया, वो भी बेचारे हमारे सेना के बहदुर जवान या फ़िर एक कुछ बहादुर पुलिस वाले कुछ दिन तक उस आतंकवादी का चेहरा उसका पुरा जीवन गाथा मिडिया वाले अलग अलग अंदाज में हमारे आप के सामने परोसेंगे धीरे धीरे गायब। इधर पुलिस उन्हें न्यालय में पेश करेगी और अब धीरे धीरे उन आतंकवादियों के हिमायती पैदा होने शुरू होजाएंगे, पता है ये लोग कौन है वही जो पहले तो इनका विरोध दिखने के लिए करते है उधर कोर्ट ने मौत की सज़ा दी और उधर एक अर्जी हमारे देश के माननीय राष्ट्रपति जी के फांसी माफ़ी के लिए पहुच जायेगी आब आपको तो पता है यंहा पर अर्जी पर फ़ैसला आने में कितना वक्त लगता है तब तक कितने राष्ट्रपति जी आएंगे और जायेंगे लेकिन वह अर्जी वही की वही पड़ी रहेगी और फांसी की सज़ा लटकी रहेगी. उधर वह आतंकी जेल के अन्दर से अपनी सजिसो में रंग भरता रहेगा और हम इस तरह के हमलो को झेलते रहेंगे और हर बार हम कहेंगे अब हम तैयार है . आप लोग ख़ुद ही देखिये संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु का क्या हुआ आज तक कहिर हमें तो पता नहीं शायद आपको हो.
तो माननीय गृहमंत्री जी आपको वित्तमंत्री से गृहमंत्री इस लिए बनाया गया है की आप शिवराज पाटिल जैसे एक दीन में तीन तीन बार आपने कोट न बदले तो मेरा आप से और शायद इस देश का हर आम खास और गरीब जनता की याचना है की इस तरह की सांत्वन देने की जगह कुछ कडे कदम उठाकर करके आतंकवाद को पनपने से रोके, न की हमले झेलने के लिए तैयार हो अब वक्त आगया है की उठे बढे अपने हथियारों में गोलिया भरे और निर्दोषों की हत्या कराने वाले इन क्रूर निर्दयी अमानुष व्यक्तियों के सीनों को गोलियों से झलनी कर दिया जाए चाहे वह किस भी धर्म या किसी भी मजहब का क्यो नहो क्योकि इंसानियत और इन्सान का कोई धर्म नहीं कोई मज़हब नहीं कोई देश नहीं अगर कुछ है तो वह केवल एक भाईचारा एक प्रेम बस
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Thursday, February 19, 2009
ख़बर की ख़बर (गृहमंत्री पी. चिदंबरम)
Posted by Anonymous at 1:32 AM
Labels: गृहमंत्री पी. चिदंबरम का बयान
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रहीम दास के दोहें
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
कबीर के अनमोल बोल
सो ब्राह्मण जो कहे ब्रहमगियान,
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
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