"इस देश को जितनी हानी दुर्जनों कि सक्रियता से नही हुई उतनी सज्जनो कि निष्क्रियता से हुई है।
शिक्षक कभी साधारण नही होता। निर्वाण और प्रलय उनकी गोद मी पलते है।"
आचार्य चाणक्य की यह कही बात आज के सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्षयमें पूर्णतया सत्य है,यह देश जितना दुर्जनों के द्वारा दिए जारहे कष्टों से उतना परेशान नही जितना हमारे समाज के सजन्नो की निष्क्रियता से दुखी है। आज अपने आस-पास ही देखिये आप के ऊपर अत्त्याचार हो रहा है लेकिन आप के सज्जन पड़ोसी चैन की नीदं ले रहे है। आपके जमीन के ऊपर भू माफिया ने कब्जा कर लिया है लेकिन आपके सज्जन मित्र आप का साथ नही दे सकते , अगर आप उनसे कोई मदद मांगेगे तो उनका सीधा जवाब होगा की भाई मई तो सीधा सदा सज्जन आदमी हूँ , भला मै आप की क्या मदद कर पाउँगा,अरे नही भाई आप सीधे कान्हा है आप तो बहुत ही सीधे है बिल्कुल जलेबी की तरह से , जब इनपर कोई संकट आयेगा तो ये यह कहते फिरेंगे की भाई हमारी तो कोई मदद नही कर रहा है, भाई कैसे कोई आप की मदद करे सब बेचारे सीधे साधे है भला आप की मदद कोई कैसे करे सब तो यंहा सज्जन है। इस तरह की कितनी समस्याओं से हम लोगों को दो चार होना पड़ता है घर में , समाज में , ट्रेन में, बस में , सरकारी ऑफिस में , सड़क पर और भी जाने कितनी जगहों पर परेशानिया मिलाती है लेकिन कोई सज्जन आपकी मदद को आगे नही आता है, जिसका नतीजा एक दो टके का गुंडा भी भरी बस में , चलती सड़क पर, भरे बाज़ार में किसी लड़की को छेड़ता है, कोई उचक्का आपका बटुआ लेकर रफ्फु चक्कर होजाता है लेकिन हाय यह सज्जन बंधू खड़े हो कर तमाशा देखते और बेचारा कहा कर सांत्वना देते है , लेकिन कोई भी आगे बढ़ कर इसे होने से नही रोकता, जो की कल फ़िर किसी के साथ हो सकता है । इसी लिए जितना इस देश समाज को दुर्जनों से हानि नही है उतना सज्जनों के निष्क्रियता से नुकसान है तो कृपया सज्जन बंधुओ सज्जन जरुर बने लेकिन निष्क्रिय नही ये देश ये समाज आप का आभारी रहेगा ।
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