Thursday, February 19, 2009

नक़ल

मैंने कल एक लेख वेब दुनिया से उठा कर अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया जैसा लिखा था वैसे ही पोस्ट किया कोई फेर बदल नही किया शीर्षक था नकली असली मुद्दा था नकली ताजमहल के बारे में और पोस्ट करने का उदेश्य था की हमारे जैसे लोग जो न तो समय पर समाचारपत्र पढ़ पते और न ही देख पाते तो कम से कम इस बारे में जाने की मुगल बादशाह शाहजहाँ की आखरी हसरत की कोई ताज महल की नक़ल न कर पाए उसको भी खाक के सुपर्द कर दिया, बांग्लादेश के एक सज्जन एहसानुल्लाह मोनी (बांग्लादेशी फिल्मकार)। भाई नक़ल को तो कोई नही रोका सकता क्योंकि यह अनुवांशिक है बच्चे बाप की नक़ल करते है लोग कहते है की इसकी नाक मेरे जैसी है तो आंख माँ की जैसी। लेकिन सवाल यह है नक़ल किस की होनी चाहिए और उस नक़ल का उदेश्य क्या है अगर कोई नक़ल किसी देश समाज के कल्याण हेतु किया जा रहा है , या फ़िर किसी अच्छे आचरण का नक़ल हो रहा है तो इसमे क्या बुरा है अगर कोई भगवन राम या महात्मा गाँधी की नक़ल करे तो क्या आप या हम उसे बुरा कहेंगे नही न , लेकिन अगर कोई ओसम बिन लादेन या दाऊद की नक़ल करे तो कया आप या हम उसे अच्छा कहेंगे नही ना, तो क्या ताज महल की नक़ल उचित है जो विश्व का आठवां अजूबा है उसकी गरिमा को उसकी अस्मिता को ठेश पहुचने की कोशिश नही है , अगर आप विश्व के सबसे लंबे पुल या बाँध का नक़ल करते तो शायद यह बुरा नही है क्योकि की यंहा पर उदेश्य है देश और समाज का हित लेकिन एहसानुल्लाह मोनी का उदेश्य व्यक्तिगत है नाम और पैसा शायद इसी लिए वे इस की नक़ल कर रहे है, मुझे भी किसी सज्जन पाठक ने कहा की आप ने जो ख़बर प्रकाशित किया है अपने ब्लॉग में वो नक़ल नही , अरे नही भाई यह भी नक़ल है लेकिन मेरे नक़ल का उदेश्य अपने ब्लॉग की लोकप्रियता बढानी या पैसा कमाना नही मुझे यह ख़बर अच्छी लगी सो नक़ल कर दी लेकिन ये रीमिक्स नक़ल नही है जैसा है वैसा ही छापा हूँ और इस लेख का मतलब यह नही है की मै ख़ुद को निर्दोष साबित कर रहा हु और नकली ताज बनने वाले को ग़लत सबका आपना नजरिया होत है और सबकी आपनी सोंच बाकि आगे आपकी मर्ज़ी मेरी मर्ज़ी तो मैंने लिख दी।

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