यदि रोगी दुबला-पतला है तो उसे थोड़ी ज्यादा कैलोरीज की जरूरत होगी यानी मोटे व्यक्ति की अपेक्षा 10 कैलोरी प्रति किलो ज्यादा कैलोरीज। यदि रोगी सामान्य शरीर का हो यानी न ज्यादा मोटा और न ज्यादा दुबला-पतला को मध्यम मात्रा यानी 5 कैलोरी प्रति किलो, मोटे व्यक्ति वाली मात्रा से ज्यादा और दुबले व्यक्ति वाली मात्रा से कम मात्रा में कैलोरी मिलना पर्याप्त होगा।
आज की व्यस्त और दौड़-धूपभरी दिनचर्या में फँसे व्यक्ति के लिए यह ख्याल रखना बहुत मुश्किल है कि दिनभर में उसे कितनी कैलोरीज वाला आहार लेना है और कितनी कैलोरीज वाला ले रहा है। यह जानने के लिए एक चार्ट रखें, जिसमें सभी खाद्य पदार्थों के नाम हों तथा उनके आगे कैलोरी की मात्रा अंकित हो।
सन्तुलित आहार के आंकड़ों को अगर रोगी समझ न सकें तो इतना ही जान-समझ लें कि उसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कितनी मात्रा में खाना चाहिए तो भी उसका काम मजे से चल सकता है। हम ऐसी ही आवश्यक और उपयोगी जानकारी सन्तुलित और पथ्य आहार के विषय में यहां प्रस्तुत कर रहे हैं, जिस पर अमल करना मुश्किल नहीं होगा। मन वश में हो, सन्तुलित और उचित आहार-विहार किया जाए, व्यायाम या योगासनों का अभ्यास किया जाए तो मधुमेह रोग से ग्रस्त होने का सवाल ही पैदा न हो।
घरेलू चिकित्सा
1. बेल के ताजे हरे पत्तों का रस 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीना चाहिए। यह रस मिक्सर या ज्यूसर में पत्ते डालकर निकाला जा सकता है या सिल पर पानी के छींटे मारकर कूट-पीसकर, मोटे कपड़े से निचोड़ कर निकाला जा सकता है। यह बहुत गुणकारी प्रयोग है।
2. पलाश (ढाक) के फूलों का रस आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम पीना चाहिए। यह भी उत्तम प्रयोग है।
3. गुड़मार 80 ग्राम, बिनोले की मिंगी और जामुन की गुठली 40-40 ग्राम, बेल के सूखे पत्ते 60 ग्राम, नीम की सूखी पत्तियाँ 20 ग्राम। सबको कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें। इसे आधा-आधा चम्मच मात्रा में सुबह-शाम भोजन करने से एक घण्टे पहले ठण्डे पानी के साथ फाँक लेना चाहिए। यह योग यकृत और अग्न्याशय को बल प्रदान कर उनके विकार नष्ट करता है, मूत्र में आने वाली शर्करा को रोकता है और रक्त शर्करा को नियंत्रित कर सामान्य मात्रा में रखता है। यह योग 'मधुमेह दमन चूर्ण' के नाम से बना-बनाया बाजार में भी मिलता है। यह परीक्षित है।
4. पिसी हल्दी आधा चम्मच और सूखे आंवलों का चूर्ण 1 चम्मच-सुबह शाम पानी के साथ सेवन करते रहने से पेंक्रियाज (अग्न्याशय) को बल मिलता है, जिससे इन्सुलिन नामक हार्मोन उचित मात्रा में बनता रहता है और रक्त शर्करा सामान्य मात्रा मे बनी रहती है। यह प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति भी करे तो मधुमेह रोग के आक्रमण से बचा रह सकता है।
Ramayan
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Friday, January 9, 2009
मधुमेह : चिकित्सा और परहेज
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रहीम दास के दोहें
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
------------------------------------------
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
------------------------------------------
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
------------------------------------------
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
------------------------------------------
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
------------------------------------------
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
------------------------------------------
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
------------------------------------------
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
------------------------------------------
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
------------------------------------------
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
------------------------------------------
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
कबीर के अनमोल बोल
सो ब्राह्मण जो कहे ब्रहमगियान,
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
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