Friday, January 9, 2009

मधुमेह

मधुमेह सारे विश्व में और हमारे देश में भी तेजी से बढ़ रही एक व्याधि है। मधुमेह यानी डायबिटीज। यह सब आधुनिक खान-पान, प्रदूषित वातावरण, रहन-सहन आदि का परिणाम है।

इस व्याधि की चपेट में हर उस व्यक्ति के आने की संभावना रहती है जो श्रमजीवी नहीं है, परिश्रम नहीं करता, व्यायाम नहीं करता, खूब साधन सम्पन्न है, आराम की जिन्दगी जीता है, खूब खाता-पीता है, मोटा-ताजा है, इसलिए यह बीमारी सम्पन्नता की, बड़प्पन की और वीआईपी होने की प्रतीक बन गई है। ऐसा सौभाग्यशाली कोई बिरला ही मिलेगा जो बड़ा आदमी हो और उसे मधुमेह रोग न हो।

यह रोग संक्रामक नहीं है पर वंशानुगत प्रभाव से हो सकता है। जिनके माता-पिता या दादा-दादी को मधुमेह रहा हो, उन्हें तो बचपन से ही आहार-विहार के मामले में ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। अगर एक बार दवा-इलाज, विशेषकर इन्सुलिन लेने के चक्कर में फँस गए तो वे जीवन पर्यन्त इस चक्र से निकल न सकेंगे। इस चक्कर में पड़कर घनचक्कर बनने से बचने के लिए सन्तुलित आहार लेना बहुत आवश्यक है।

मधुमेह होने के लक्षण मालूम पड़ते ही मूत्र और रक्त की जाँच करवा लें। सुबह खाली पेट रक्त की जाँच में शर्करा की मात्रा 80 से 120 एमजी (प्रति 100 सीसी रक्त) के बीच में होना सामान्य स्वस्थ अवस्था होती है। यदि यह अवस्था हो तो मनुष्य स्वस्थ है। यदि शर्करा की मात्रा 120 एमजी से ज्यादा, लेकिन 140 एमजी से कम हो तो यह मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था होगी। यदि 140 एमजी से ज्यादा हो तो मधुमेह रोग ने जड़ जमा ली है ऐसा माना जाएगा।

भोजन करने के दो घण्टे बाद की गई जाँच में भी रक्त शर्करा 120 एमजी से कम पाई जाए तो मनुष्य स्वस्थ है, किन्तु यदि 140 एमजी तक या इससे कम पाई जाए तो मधुमेह होने की प्रारंभिक अवस्था मानी जाएगी, लेकिन अगर 140 एमजी से ज्यादा पाई जाए तो मधुमेह रोग से ग्रस्त होना मान लिया जाएगा। मधुमेह धीरे-धीरे पनपता है और जब तक उग्र अवस्था में न पहुँच जाए तब तक इसका साफ पता नहीं चल सकता, इसलिए मोटे शरीर वाले और 40 वर्ष से अधिक आयु वाले स्त्री-पुरु षों को 2-3 माह में एक बार स्वमूत्र और रक्त की जाँच कराते रहना चाहिए। यदि पेशाब में शर्करा पाई जाए या रक्तगत शर्करा सामान्य मात्रा से ज्यादा पाई जाए तो अपने आहार में तुरन्त उचित सुधार कर सन्तुलित आहार लेना शुरू कर देना चाहिए और आवश्यक परहेज का सख्ती से पालन करना चाहिए।

सन्तुलित आहार का तात्पर्य होता है शरीर को जितनी ऊर्जा की आवश्यकता हो, उतनी ऊर्जा देने वाला आहार ग्रहण करना। न कम न ज्यादा। मधुमेह का रोगी यदि प्रौढ़ावस्था का है, कम परिश्रम करता है, आराम की जिन्दगी जीता है तो 1500 से 1800 कैलोरीज प्रतिदिन मिलना उसके लिए काफी होती है। कैलोरीज का निश्चय शरीर के वजन के हिसाब से किया जाता है। मोटे व्यक्ति को वजन के हिसाब से प्रति किलो 20 से 25 कैलोरी प्राप्त होना पर्याप्त है, सामान्य श्रम करता हो तो 30 कैलोरी प्रति किलो और अधिक परिश्रम करता हो तो 35 कैलोरी प्रतिकिलो प्रतिदिन मिलना पर्याप्त होता है।...........cont.

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