5. मेथीदाना 500 ग्राम, धो-साफकर, 12 घण्टे तक पानी में भिगोकर रखें। बीज फूल जाएँगे। इन्हें पानी से निकाल कर सुखा लें और कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। सुबह-शाम 1-1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है।
6. एक प्रयोग बनी-बनाई आयुर्वेदिक औषधियों के मिश्रण से तैयार करने वाला भी प्रस्तुत कर रहे हैं। आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दुकान से वसन्तकुसुमाकर रस या शिलाजत्वादि वटी (अम्बरयुक्त) और प्रमेहगज केसरी वटी की शीशी ले आएं। दोनों की 1-1 गोली सुबह-शाम दूध के साथ लें। इसके साथ मधुमेह दमन का चूर्ण भी सेवन करने से विशेष और शीघ्र लाभ होता है।
स्वयं इन नियमों का पालन करे- मधुमेह के रोगी को अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही आहार लेना चाहिए। यह भी कहना उचित होगा कि रोगी पथ्य आहार का सेवन करता रहे तो रोग को नियंत्रण में रखना ज्यादा सरल होगा और चिकित्सा सफल हो सकेगी। रोगी को आहार ही नहीं, बल्कि विहार यानी रहन-सहन को भी नियमित और नियंत्रित करना होगा। इस हेतु निम्नलिखित प्रयोग उचित होंगे-
* प्रातः घूमने जाएं, लौटने के बाद घर में जमाया हुआ दही, थोड़ा सा पानी और जीरा, नमक मिलाकर पिएं। चाय-दूध न लें। दही की मात्रा अपनी इच्छा के अनुसार जितनी चाहें उतनी ले सकते हैं। दही के मामले में कुछ सावधानियां रखनी होंगी। एक तो दही रात में घर में ही जमाया हुआ हो, मलाईरहित दूध से जमाया हुआ हो, बाजार से लाया हुआ न हो। दूसरे, दही अलग एक पात्र में उतना ही जमाएं जितना खा सकें। तीसरे, दही को जब तक खाएं न, तब तक जमा रहने दें, काटें नहीं, क्योंकि जमा हुआ दही काटने के बाद खट्टा होना शुरू हो जाता है जो कि हानिकारक होता है, इसलिए बाजार से दही लाने को मना किया गया है।
* मेथी दाने का पानी, 'जाम्बुलिन', मूंग-मोठ आदि का प्रयोग कर सकते हैं। यह पूरा प्रयोग प्रातः 7 बजे से पहले कर लेना चाहिए ताकि 3-4 घण्टे बाद भोजन कर सकें।
* भोजन में जौ-चने के आटे की रोटी, हरी शाक सब्जी, सलाद और छाछ का सेवन करें। छाछ भोजन करते हुए घूंट-घूंट करके पीते रहें। भोजन के बाद एक सेवफल खा लिया करें। जौ व चने का आटा तैयार करने के लिए पांच किलो साफ किया हुआ जौ और एक किलो देसी चना मिलाकर पिसवा लें। यह आटा खत्म हो जाए तब 4 किलो जौ और 2 किलो चना मिलाएं। इसी प्रकार जौ की मात्रा कम और चने की मात्रा ज्यादा करते हुए जौ और चने की मात्रा बराबर कर लें फिर दोनो को बराबर वजन में यानी 3-3 किलो मिलाकर पिसवा लें। इस आटे की रोटी स्वादिष्ट भी होती है और शक्ति स्फूर्तिदायक भी, साथ ही साथ वजन घटाने में भी सहायक सिद्ध होती है।
* शाम का भोजन 7 बजे तक हर हालत में कर लिया करें। मधुमेह के रोगी को निश्चित समय पर ही भोजन करने का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। भोजन में मीठे पदार्थ, शकर, मीठे फल, मीठी चाय, मीठे पेय, मीठा दूध, चावल, आलू, तले पदार्थों आदि का सेवन कर देना चाहिए। शकर की जगह सेकरीन की गोली का प्रयोग करके खाद्य या पेय पदार्थ को मीठा कर सकते हैं। आहार में वसा, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेटयुक्त पदार्थो का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए- जैसे दूध, घी, तेल, फल, सूखे मेवे, अनाज, दाल आदि। मांसाहार और शराब का सेवन कतई नहीं करना चाहिए।
* रेशायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ज्यादा मात्रा में करना चाहिए जैसे शाक सब्जी, आटे का चोकर, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, अखण्ड दालें आदि।
* दिनचर्या में तेल मालिश, वायु सेवन हेतु सूर्योदय से पहले घूमने के लिए जाना, योगासन करना या कोई व्यायाम करना, दिन में चल-फिरकर करना हितकारी रहता है। योगासनों में सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, शलभासन, योग मुद्रा, धनुरासन, सर्वागासन, पश्चिमोत्तानासन और अन्त में शवासन करना चाहिए। भोजन के बाद थोड़ी देर वज्रासन में बैठना चाहिए। योगासन या व्यावाम का अभ्यास अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए उससे ज्यादा मात्रा में नहीं।
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Friday, January 9, 2009
मधुमेह : चिकित्सा और परहेज
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रहीम दास के दोहें
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
------------------------------------------
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
------------------------------------------
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
------------------------------------------
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
------------------------------------------
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
------------------------------------------
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
------------------------------------------
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
------------------------------------------
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
------------------------------------------
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
------------------------------------------
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
------------------------------------------
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
------------------------------------------
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
------------------------------------------
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
------------------------------------------
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
------------------------------------------
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
------------------------------------------
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
------------------------------------------
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
------------------------------------------
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
------------------------------------------
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
कबीर के अनमोल बोल
सो ब्राह्मण जो कहे ब्रहमगियान,
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
-----------------------------------------------------------
चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
-----------------------------------------------------------
पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
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