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Wednesday, February 18, 2009
नकली असली
मुगल बादशाह शाहजहाँ को क्या पता था कि उसकी पुरजोर कोशिश के बावजूद उसके द्वारा निर्मित आगरा स्थित विश्व प्रसिद्ध ताजमहल की एक दिन नकल हो ही जाएगी।
कहा जाता है कि बादशाह शाहजहाँ ने अमर प्रेम के स्मारक ताजमहल के निर्माण के बाद उसके कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे, ताकि दुनिया में कोई इसकी नकल नहीं बना सके।
ताजमहल बनने के 356 वर्षों के बाद अब इसकी प्रतिकृति बनाने का दुस्साहस बांग्लादेश के एक करोड़पति फिल्मकार ने किया है। ताजमहल की यह नकल भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव का कारण भी बन सकती है।
फ्रांस ने एफिल टावर को नकल से बचाने के लिए उसके डिजाइन का पेटेंट करा लिया था लेकिन भारत को इसका जरा भी अंदेशा नहीं रहा होगा कि दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल की भी भविष्य में कोई नकल बना लेगा। शायद इसीलिए सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।
बांग्लादेशी फिल्मकार एहसानुल्लाह मोनी को बॉलीवुड फिल्मों की नकल बनाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार उन्होंने भारत की ऐसी ऐतिहासिक विरासत की नकल की है, जिस पर हर भारतीय को बहुत गर्व है और जिसकी एक झलक के लिए विश्व के कोने-कोने से लाखों पर्यटक प्रतिवर्ष भारत की यात्रा करते हैं।
मोनी ने ताजमहल की इस प्रतिकृति का निर्माण बांग्लादेश की राजधानी ढाका से लगभग 30 किलोमीटर दूर नारायणगंज जिले के सोनारगाँव में लगभग पाँच वर्ष पहले शुरू कराया था।
ताजमहल की यह नकल अब लगभग बनकर तैयार हो गई है और इसे संभवतः मार्च में आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
बकौल मोनी उन्हें ताजमहल की नकल बनाने का विचार वर्ष 1980 में उस समय आया, जब उन्होंने स्वयं आगरा जाकर ताजमहल देखा। हालाँकि बाद में उन्होंने कई बार आगरा जाकर बारीकी से ताजमहल को देखा और उसके डिजाइन की हूबहू नकल करने के लिए कई विशेषज्ञों को भी वहाँ भेजा।
शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने के लिए उत्कृष्ट निर्माण सामग्री का उपयोग किया था। इसमें प्रयुक्त संगमरमर राजस्थान के मकराना से, लाल पत्थर सिकरी धौलपुर से, कीमती पत्थर भारत के दूरदराज क्षेत्रों श्रीलंका और अफगानिस्तान से मँगाए गए थे।
मोनी ने नकली ताजमहल के लिए संगमरमर और ग्रेनाइट इटली से और हीरे बल्जियम से मँगाए हैं। बंगलादेश में बनने वाले ताजमहल की नकल बनाने पर लगभग छह करोड़ डॉलर की लागत आएगी।
भारत ने अपनी इस बेशकीमती राष्ट्रीय धरोहर की नकल बांग्लादेश में बनाए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है। बांग्लादेश में प्रकाशित समाचारों के अनुसार ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग के प्रवक्ता दीपक मित्तल का कहना है कि उन्हें भी मीडिया के जरिए ही ताजमहल की नकल बनाए जाने के बारे में जानकारी मिली है। वे इस बारे में विस्तृत ब्यौरा जुटा रहे हैं।
उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति भारत जाकर किसी भी ऐतिहासिक इमारत की नकल कैसे कर सकता है।
हालाँकि बांग्लादेशी अधिकारियों ने इस बात को खारिज कर दिया है कि भारतीय ताजमहल का किसी प्रकार का कॉपीराइट किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि इस तरह की इमारत की नकल करना गैरकानूनी है।
जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश का इतिहास भी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से भरा पड़ा है। इससे पहले बांग्लादेश में लुइस खान ने संसद भवन का ऐसा डिजाइन तैयार किया था, जिसे बनने में लगभग दो दशक का समय लगा था। भारतीय इमारतों की नकल बनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य विश्व स्तर पर लोकप्रियता हासिल करना है ताकि पर्यटकों को यहाँ आकर्षित किया जा सके।
मोनी का कहना है कि बंगलादेश में अधिकतर लोग विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल को देखना चाहते हैं लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे भारत की यात्रा नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने ताजमहल की प्रतिकृति अपने देश में ही बनाने का निर्णय लिया।
बांग्लादेश में ताजमहल की नकल बनाने के पीछे मुख्य कारण गरीबी रेखा से से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को वैकल्पिक ताजमहल के दीदार कराना है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि शाहजहाँ ने ताजमहल को बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे भविष्य में ऐसी कोई इमारत नहीं बना सकें, हालाँकि इसका कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ताजमहल की प्रतिकृति बनाने के पीछे चाहे जो भी कारण हों लेकिन इसके कारण भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट घुल सकती है। किसी भी गलत कार्य को भलाई के लिए किया गया बताकर सही नहीं ठहराया जा सकता।
हालाँकि ताजमहल की प्रतिकृति के आम जनता के लिए खोले जाने के बाद ही इसका निर्णय हो सकेगा कि मोनी असली ताजमहल की वास्तविक खूबसूरती की सही अर्थों में नकल करने में कहां तक सफल हुए हैं।
नकली ताजमहल देखने वालों का कहना है कि इस पूरी परियोजना को बड़े ही घटिया तरीके से पूरा किया जा रहा है और इसमें ऐसा कोई भी कीमती पत्थर, टाइल्स और हीरे लगे दिखाई नहीं देते जैसा कि इसके बनाने वाले फिल्म निर्देशक मोनी ने दावा किया है।
कुछ लोगों का कहना है कि बांग्लादेश में नकली ताजमहल बनने के बाद यहाँ बड़ी संख्या में पर्यटक आकर्षित होंगे, जिससे देश के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने असली ताजमहल देखकर उसकी सराहना में कहा था कि
दुनिया में दो तरह के लोग है, एक तो वे जिन्होंने ताजमहल देखा है और दूसरे वे जिन्होंने ताजमहल नहीं देखा है।
जाहिर है कि नकली ताजमहल तो ऐसी सराहना बटोर नहीं पाएगा।
वेबदुनिया से लिया गया है
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Posted by Anonymous at 2:01 AM
Labels: सौजन्य वेबदुनिया
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रहीम दास के दोहें
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
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तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
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दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
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एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
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चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
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आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
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जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
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खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
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जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
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दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
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बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
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माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
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मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
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रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
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रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
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बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
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रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
कबीर के अनमोल बोल
सो ब्राह्मण जो कहे ब्रहमगियान,
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
काजी से जाने रहमान
कहा कबीर कछु आन न कीजै,
राम नाम जपि लाहा लीजै।
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चलती चक्की देख के कबीर दिया रोय।
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय।।
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पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
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प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहरि भीतरि पानी।
फुटा कुंभ जल जलाहि समाना यहुतत कघैं गियानी।
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गुर गोविंद तौ एक है, दूजा यहू आकार।
आपा भेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।
1 comments:
भाई साहब, आप वेबदुनिया की सामग्री अपने ब्लॉग पर क्यों प्रकाशित कर रहे हैं। क्या यह भी बांगलादेश की तरह नकल नहीं है?
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